Hindi Poetry on Zindagi,मेरी मजबूरी को समझो
Hindi Poetry on Zindagi,मेरी मजबूरी को समझो
मेरी मजबूरी को समझो,
मुझे झुकना नहीं आता,
कभी हार मानना नहीं आता,
परिस्थितियाँ कैसी भी हो,
मुझे टूटना नहीं आता!
मेरी मजबूरी को समझो
मैं कैसे अपने आप को दुनिया की तरह बदल लू,
मैं कैसे आसान रास्तों को ही चुन लू,
मैं कैसे झूठे लोगों से मुस्कुराहट लिए मिलू!
मेरी मजबूरी को समझो,
मुझे दुनिया की यह चकाचौंध अच्छी नहीं लगती,
मेरी चाहते कुछ अलग है,
मैं बस लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट चाहता हूं,
मुझे अच्छा लगता है किसी अनजान सफर पर निकल पड़ना
और कुछ अनजान लोगों से बातें करना!
मेरी मजबूरी को समझो
मैं जानता हूं पहले अपने आप को पाने के लिए इन राहों पर भटकना होगा,
संभलना होगा और अपने आपको खोना होगा!
मेरी मजबूरी को समझो
मैं इस दुनिया में कुछ अलग पहचान बनाने आया हूं,
मुझे प्यार के बंधन में ना बांधो,
बस मेरे साथ रहो,
मेरे साए की तरह,
मुझे पहले अपने आप को पा लेने दो,
अपना मकसद तलाश लेने दो,
कुछ अपनी पहचान बना लेने दो,!
मेरी मजबूरी को समझो!
मेरी मजबूरी को समझो!
Avinash Shahi~Hindi Jazbaat~