Hindi Poetry On Life,कब ऐसा चाहा मैंने
Hindi Poetry On Life,कब ऐसा चाहा मैंने
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कब ऐसा चाहा मैंने
की ये दुनिया मेरे साथ कठोर न बने
की जिंदगी के इन रास्तो पे मेरे पैरो पे छाले न पड़े
की जो मैं सोचु वो मुराद मेरी पूरी हो जाए
की मुझे कभी कोई गम न मिले
कब ऐसा चाह मैंने
के इस तपती धुप मे भी मुझे छाया मिले
के हर परेशानी मे कोई मेरा सहारा बने
के हर कोई मेरे जज्बातों की क़द्र करे
के ये दुनिया मेरे साथ कठोर न बने
कब ऐसा चाह मैंने
मै हर रास्ते पर अकेला ही चला
मैं किसी परिस्थिति मे हिम्मत नहीं हारा
मै अपनी जिंदगी का निर्माता खुद हु
मैंने कभी भी सच से अपना मुह नहीं फेरा
हर दिन थकता, हर दिन गिरता, हर दिन उठता
मैंने न किसी से सहारा माँगा
न कभी किसी से सहारे की उम्मीद करी
नदी की धारा की तरह हर परिस्थिति के अनुसार अपने आप को ढालता रहा
बस मन मे अपने सपने लिए निकल पड़ा मै
रातो को जगता कभी
और कई राते करवटे बदलते गुजार देता
यह सपने मेरे अपने है
इन्होने मुझे सोने न दिया
यकीं है मुझे खुद पे
न ही रुकना जानता हु,न ही झुकना
इस जीवन के इम्तेहान मे
बस जीतना जानता हु
बस जीतना जानता हु